- कोर्स की आड़ में लूटे जा रहे अभिभावक, अधिकारी खामोश!
Parents are being looted in the name of courses, officials are silent! : लखनऊ। नए सत्र की शुरुआत होते ही बच्चे पढ़ाई के लिए तैयार हो गए हैं। नए कोर्स और ड्रेस को लेकर बच्चों में खासा उत्साह भी रहता है। हालांकि बच्चों की जिंदगी संवारने में अभिभावकों की गाढ़ी कमाई स्कूल प्रबंधन व पुस्तक विक्रता मिलकर लूट रहे हैं। ताज्जुब की बात है कि इस पर कोई भी अधिकारी कार्यवाही करने को तैयार नहीं है।
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नवीन सत्र की शुरुआत 1 अप्रैल से हो चुकी है। प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन भी शुरू हो गए हैं। नई कक्षा में दाखिला मिलने के बाद अभिभावकों को एक तय जगह बताई जा रही है, जहां से उन्हें बच्चों की स्कूल यूनिफॉर्म व कोर्स मिल रहा है। तय जगह इसलिए रखी जाती है क्योंकि विद्यालय का वहीं से कमीशन सेट होता है। अगर अभिभावक किसी अन्य जगह से कोर्स लेना भी चाहें तो उसे बाजार में ये कोर्स कहीं और से नहीं मिलता है।
….गंदा है पर धंधा है
यह हाल राजधानी लखनऊ के साथ आसपास के जिलों में देखने को मिल रहा है। नाम न छापने की शर्त पर लखीमपुर के एक अभिभावक ने बताया कि उनके बच्चे शहर के ऑक्सफोर्ड कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ते हैं। उन्हें बताया गया कि कोर्स मिश्राना स्थित गौरव बुक डिपो पर मिलेगा। गौरव बुक डिपो पर उन्हें कोर्स 9830 रुपये का दिया गया। जिस पर उन्होंने पांच हजार रुपये नगद और बाकी रुपये ऑनलाइन दिए थे। अभिभावक का कहना है जब उन्होंने इसका बिल मांगा तो दुकानदार में बाद में देने की बात कह कर टाल दिया।
करीब 4-5 दिनों बाद जब पुनः बिल मांगा गया तो बिल यूनिवर्सल बुक सेंटर के नाम से मात्र 8730 रुपये का दिया गया। जबकि उसने दुकानदार को 9830 रुपए दिए थे। ऐसे में साफ समझा जा सकता है किस तरह लोगों को चूना लगाया जा रहा है।
तो ऐसे हो रही जीएसटी की हो रही चोरी
अभिभावक को दिए गए बिल की राशि न सिर्फ कम कर दी गई, बल्कि बिल पर सिर्फ किताबों का जिक्र किया गया है, कॉपी सहित अन्य स्टेशनरी को दिखाया ही नहीं गया है। इस सम्बंध में जब आयकर विभाग के एक वकील से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि चूंकि किताबों पर कोई टैक्स नहीं होता, बल्कि कॉपी सहित अन्य सामान पर टैक्स लगता है। इसलिए जब कोई अभिभावक पक्के बिल की।मांग करता है तो दुकानदार सिर्फ किताबों का बिल बनाकर से देते हैं, जो सीधे-सीधे टैक्स की चोरी में आ जाता है।
विद्यालय पहले ही ले लेते हैं मोटा कमीशन
सूत्रों की मानें तो नवीन सत्र शुरू होने से पहले ही विद्यालय द्वारा तय पुस्तक विक्रता से मोटा कमीशन पहले सेट हो जाता है। जिस विद्यालय में जितने बच्चे, उसी हिसाब से उसका कमीशन होता है। विद्यालय में मोटे कमीशन का चढ़ावा चढ़ाने के बाद पुस्तक विक्रता को कई अधिकारियों को भी समझना पड़ता है। इसीलिए हर साल की तरह यह गोरखधंधा चलता रहता है और किसी पर कोई कार्यवाही नहीं हो पाती है।